Hari Om Gaur
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ठहर अभी !

Dec 23, 2015

बहुत ज्यादा हो, तू क्या तब ही मानेगा

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रुक दो पल बहुत हुआ अब
बहुत ज्यादा हो,
तू क्या तब ही मानेगा
...
नहीं कलम न कागज़ करीब
तो क्या जो खूं है बह रहा,
बेकार ही बहता जायेगा
...
प्रतिपल अगणित संसार है बनते
बस रहा ख्वाबो में उलझा,
तो उन्हें धरा कब लाएगा
...
जो चाह तेरी तूने न चाही
पुरे दिल ओ जान से,
तो किसका पूरा बन पायेगा
...
ठहर अभी, अभी पूरा कर
वो आज का सपना कि,
ये आज न कल फिर आएगा

Hari Om Gaur

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