तो क्या होता!
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टूटते कांच का शोर चुभता है जेहन में
जो दिलों का टूटना सुनता तो क्या होता
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जो दिलों का टूटना सुनता तो क्या होता
खपा दिमाग कल के बारे में परेशां हैं सब
तक़दीर पहले पता होती तो क्या होता
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तक़दीर पहले पता होती तो क्या होता
बसे बसाए घर तो उठ गए इक दिन में
ऊपरवाले से सबर उठ जाता तो क्या होता
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ऊपरवाले से सबर उठ जाता तो क्या होता
तुमने कसर नहीं छोड़ी थी बदसुलूकी कि
वो बिन बात किये चले जाते तो क्या होता
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वो बिन बात किये चले जाते तो क्या होता
बेकद्री खूब करी हाड़-मॉस की रैन
जो सुबह आँख न खुलती तो क्या होता
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जो सुबह आँख न खुलती तो क्या होता
मर्ज़ हुआ नहीं तो ये हश्र हुआ हरि
जो इश्क़ हो जाता तो क्या होता ....
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जो इश्क़ हो जाता तो क्या होता ....