Hari Om Gaur
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तो क्या होता!

May 16, 2016

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टूटते कांच का शोर चुभता है जेहन में
जो दिलों का टूटना सुनता तो क्या होता
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खपा दिमाग कल के बारे में परेशां हैं सब
तक़दीर पहले पता होती तो क्या होता
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बसे बसाए घर तो उठ गए इक दिन में
ऊपरवाले से सबर उठ जाता तो क्या होता
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तुमने कसर नहीं छोड़ी थी बदसुलूकी कि
वो बिन बात किये चले जाते तो क्या होता
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बेकद्री खूब करी हाड़-मॉस की रैन
जो सुबह आँख न खुलती तो क्या होता
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मर्ज़ हुआ नहीं तो ये हश्र हुआ हरि
जो इश्क़ हो जाता तो क्या होता ....
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Hari Om Gaur

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